बुढ़िया तेरा जीना सच
मरना भी सहज कहाँ
लोग मरने भी नही देते
कहते है
मरोगी तो क्रियाकर्म में
बहुत पैसे लगेंगे
सब रिश्तेदारों को बुलाना पड़ेगा
कोई चाय मांगेगा
कोई दूध
इतना पैसा कहां से आएगा
चुपचाप पड़ी रहो
यू ही खखारती
कम से कम
कुछ मांगती तो नही
रूखा सूखा खाकर पड़ी रहती हो
झांकती आंखों से तुम देख पा रहे हो न ये मजबूरी
सुन रहे हो न तुम!!@@@@अपर्णा खरे
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