उम्र के दूसरा पड़ाव
वक़्त ने
बांध दिए थे
जो हाथ
अब उम्र ने
खोल दिये है
नई उमर में
पनपा था जो प्रेम
जिसपे मजबूरी के
नमक छिड़क दिए गए थे
कर दिए गए थे अलग
भिन्न भिन्न कारणों से
कहीं जाति, कहीं धर्म,
कहीं गरीबी की दुहाई देकर,
मार दी गई थी
मासूम भावनाये
बहा दिए गए थे
अलग अलग रास्तो पे
तय करने
किस्मत की मंजिल
दे दिए गए थे
बड़े बड़े पड़ाव
जिंदगी के!
माँ, सासु माँ, पिता
सारे अनुभव
जिंदगी में उतार दिए
अब जब जीवन साथी ने भी
मोड़ लिया मुँह
अकेला छोड़
चल दिया
दूसरी दुनिया मे
देकर जिंदगी के
झंझावात...
अब कोई जिम्मेदारी नही
बेटी दामाद के पास
बेटा बहु का हो चुका है
अपने पास है जीने को
एक मात्र पेंशन
और क्या चाहिए
दवाई और महीने का खर्च
आसानी से चल जाता है
जिंदगी बस चल रही है!!
मिले है अब जाकर
एक ही रास्ते पे
मुद्दतों बाद
किस्मत से
चलो दुख-सुख बांट ले
जो नही कह सके तब
उसे अब कह ले
देर से ही सही
जीवन की गाड़ी
दुरुस्त तो आयी है
एक बार फिर जी ले
बिना किसी रोक टोक के
एक बेधड़क जिंदगी!!!
0 Comments:
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home