भूख
वो फुटपाथ पर चुपचाप पड़ी थी
आँखो मे दर्द की ना जाने कितनी
लकीरे छिपी थी...
भूख थी जो थमने का नाम नही ले रही थी
बेचारी करवट बदल बदल कर रात गुज़ार रही थी
जितनी बार पेट से आवाज़ आती
वो पानी का लंबा सा घूँट भर लेती
और चुपचाप पड़ जाती
ना जाने कितने दिनो से वो भूख को
सहन किए जा रही थी
लेकिन पेट की आग तो बस
बढ़ती ही जा रही थी
क्या पानी कभी किसी की भूख को
मिटा पाया है??
क्या वो कभी रोटी की जगह ले पाया हैं
पानी तो सिर्फ़ प्यास बुझा सकता है
पेट की आग नही......
तभी दूर एक कार आ कर रुकती हैं
उसमे से एक दंपति उतरते हैं...
उनके पास सब हैं औलाद नही है..
अपने गम को कम करने की खातिर वो
डबल रोटी बाँट रहे हैं
उसको भी कोई लाकर एक डबल रोटी का टुकड़ा
कोई दे देता हैं....
जिसे वो पानी मे भिगोकर हलक से
चुपचाप उतार लेती हैं
चलो आज की भूख तो विश्राम पा गई...
कल की क्या पता आएगा भी या नही....
कौन जानता हैं????
- Om Prakash Nautiyal दिल को झकझोर देने वाले सत्य की अभिव्यक्ति है । बहुत खूब !! *June 2 at 1:38pm · · 2 people
- Kump Singh एक भूख ही है जो इंसान को निकम्मा नही रहने देती है............
बहुत अच्छी बात लिखी है बहन......शुभाशीष,June 2 at 2:02pm · · 1 person - Manoj Gupta जो भूखे थे
वे सोच रहे थे रोटी के बारे में
जिनके पेट भरे थे
वे भूख पर कर रहे थे बातचीत
गढ़ रहे थे सिद्धांत
ख़ोज रहे थे सूत्र ....
कुछ और लोग भी थे सभा में
जिन्हौंने खा लिया था आवश्यकता से अधिक खाना
और एक दूसरे से दबी जबान में
पूछ रहे थे
दवाईयों के नाम ...June 2 at 3:02pm · · 2 people - Manoj Gupta भूख आती थी
वह उसे मार देता था
भूख जिन्दा हो जाती थी
वह फिर उसे मार देता था
भूख लौट-लौट कर आ जाती थी
वह उसे उलट-उलट कर मार देता था
एक दिन भूख दबे पांव आई
और..
उसे खा गईJune 2 at 3:07pm · · 1 person - Kiran Arya Aprna dear ek gareeb ki bhoobh aur vyakulata ko bahut achche se darshaya hai tumne, uska bebas chehra aa gaya nazaro ke saamne..........shabd nai hai kuch kahne ko mitr..............June 2 at 4:34pm · · 2 people
- Aparna Khare sach hai kiran...bhookh bhi bahut ajeeb hoti hai...sab kuch karne ko mazboor kar deti haiJune 2 at 4:36pm · · 1 person
- Kamlesh Kumar Shukla बहुत उम्दा रचना है जो यह बताती है कि २००/- की आइसक्रीम की ब्रिक को आधी खाकर बाकी फेंकने वालों और और १ रोटी को तरसते लोगों के पेट के भूगोल मे कितना अंतर है..."लखनऊ के रेलवे स्टेशन पर विज्ञापन बोर्ड के नीचे भूख से एक बालक मर गया नाम था 'कमलेश'... बोर्ड पर लिखा था भारत एक कृषि प्रधान देश" ..अपर्णा जी मार्मिक दृश्य है ये रचना नहीं है ..जो दर्शाता है आप कितनी करुण हैJune 2 at 6:05pm · · 1 person
- Aparna Khare sach kaha apne kitna waste karte hain hum sab khud bhi na kare aur baccho ko bhi sikhaye...June 2 at 6:06pm ·
- Naresh Matia bhookh kya hoti hain.uska sateek chitran kiya hain aapne.........bhookh khane se hi mil sakti hain.paani ke paas bhi uska koi jawaab nahi hain..bilkul sahi kahaa aapne...........ak achchi rachna..........June 3 at 3:57pm · · 1 person
- Aparna Khare Ajay Khare..hanji....isse bhi jyada...bhook santi kar deti hainJune 3 at 4:02pm · · 1 person
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