Friday, June 17, 2011

भगवान जी ये कैसा प्यार आप करते हो

भार देकर निर्भार करते हो
भगवान जी ये कैसा प्यार आप करते हो
कुछ तो सोचो रवि के बारे मे
कैसे चमकेगा सूरज गम के आँधियारे मे
आप तो रोज़ रोज़ नई मिसाल रचते हो
भगवान जी आप कैसा कमाल करते हो
चंद्रमा ने दी शीतलता
वनस्पतियो मे रस समाया हैं
सूरज को बनाया आग का गोला
कभी उसे भी तो लगाओ गले से
क्यूँ सूरज को छोड़ चाँद से प्यार करते हो
भगवान ये कैसा अन्याय करते हो
मैं हूँ ग़लती का पुतला
अब हो सर्वग्य, अविनाशी और अलबेला
मेरी बातों को अन्यथा ना लेना
मॅन मे यूँ ही तरह तरह के सवाल उभरते हैं
प्रभु आप क्यूँ ऐसे कमाल करते हो
जिस से मॅन मे ऐसे ख़याल उठते हो

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