दोस्ती
मुझे पता था
तुम आओगे
अपनी जान की
बाज़ी लगाकर भी
तुम आओगे
तुम्हारा
हमसे वादा था
बरसो पहले
दोस्ती का बढ़ाया
हाथ था तुम्हारा
जो तुम्हे
रोक नही पाया
तुम सबके
कहने पर भी
खुद को
नही रोक सके
मेरा सीमा पार
जाना, तुम्हारा
हमसे बिछड़ जाना
तुम्हे बार बार
रुलाता था
तुम्हे इंतेज़ार था
मेरे लौटने का
और मैं
एक बार जाकर
आ ना सका
कैसी विडंबना थी
मेरे जीवन की
कैसा खेल
खेलती हैं जिंदगी
जिंदा रहे तो मिल ना सके
मर कर करीब आए हैं
या खुदा तुमने भी
कौन कौन से रंग
दिखाए हैं...
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