फूटपाथ
फूटपाथ पे सोने की पीड़ा
एक मज़दूर ही जाने हैं
कैसा होगा अगला दिन
नही वो ......पहचाने हैं
उसके लिए तो सारे दिन
एक जैसे होते हैं.........
हो दीवाली या फिर होली
सब बेरंगे होते हैं.........
रोज़ कुआँ खोदना..........
रोज़ पानी पीना,............
रोज़ कमाना, रोज़ खाना
नही भविष्य निस्चित हैं..
कैसी हैं ये विडंबना उसकी
कैसा उसका भाग्य हैं......
मिला हैं मनुष्य जनम.....
फिर भी नही...........
सब पास हैं............
रोटी को पानी मे भिगोना......
प्याज़ के टुकड़े से खा लेना.....
और जब प्याज़ भी सस्ता ना रहे तो
नमक से खा लेना......विवशता हैं....
मेहनत, पसीना, भूख, ग़रीबी..
लाचारी की मिली सौगात हैं....
2 Comments:
मेहनत, पसीना, भूख, ग़रीबी..
लाचारी की मिली सौगात हैं...----smaaj ki visangatiyo ko ukerane me safal kaavy ---sahbd sab gunge ho gye --yathaarth ko saamne laane kaa saahas aaj kam log karte hai ---vetarni ko paar karne kaa ehsaas tumne hiyaa ---aparnaa hame garv hai tum par --
bahut bahut abhaar dada...sab kuch ap se hi seekha hain...
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