ख़लील जिब्रान की कलम से...
तुम्हारे बच्चे
तुम्हारे नही है..
वे जीवन की
जिग्यासा
के पुत्र पुत्रिया है
वो तुम्हारे द्वारा
आए है पर तुमसे नही
यधपि वो तुम्हारे साथ है..
पर वे तुम्हारी
संपत्ति नही है..
तुम उन्हे अपना प्रेम
दे सकते हो
अपने विचार नही
क्यूंकी
उनके पास स्वय के
विचार है..
तुम उनके शरीर पर
अधिकार कर सकते हो
उनकी आत्मा पर नही
उनकी आत्मा 'काल' के गृह मे है
जॅहा तुम स्वप्न भ्रमण
भी नही कर सकते
तुम यह प्रत्न तो
कर सकते हो
की तुम उनके जैसे
बन जाओ
परन्तु उन्हे
अपने जैसा
बनाने का प्रत्न
मत करो
क्यूंकी जिंदगी
पीछे की ओर
नही जाती
ना ही बीते हुए
कल के साथ रुकती है..
तुम्हारी कमान द्वारा
तुम्हारे बच्चे
जीवंत बान (बो) के
समान आगे आते है...
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