वो तुम हो..
तुम मादक
शामो की
बाते करते हो
मुझे हर पल बस
डर लगता हैं
तुम बाहर से
कोहरा देखते हो
मुझे भीतर का
अंधेरा दिखता हैं
एक ख़ौफ़ मुझे
बस ख़ाता हैं
भीतर पसरा
सन्नाटा हैं
जो थे अपने
सब छोड़ गये
मझधार मे
नैया छोड़ गये
आगे बढ़ने की
लालच मे
एक ठोकर से
बस तोड़ गये
अब ना जीने की
आशा हैं
ना मरने का
गम सताता हैं
कैसी दुख की
इस्थिति हैं
मॅन दुख से
कुंभलाया हैं
अन्तेर्मन की
पीड़ा को कोई
ना समझ
पाया हैं
ऐसे मे
मेरे दोस्त
कोई अपना
मिल जाए
मुझको संयत
कर जाए
आँसू जो निकले
आँखो से
उनको अपनापन
दे जाए
क्या कोई ऐसा
होता हैं
जो मेरे लिए भी
रोता हैं
वो कोई नही
तुम हो
मेरे दोस्त
वो तुम हो..
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