Thursday, June 30, 2011

इन्हे छलक जाने दो

अश्क़ हैं अगर
आँखो मे
इन्हे छलक जाने दो
गुबार हैं दिल का ये
इन्हे निकल ही
जाने दो
गहरी अंधियारी
रातो मे
कुछ उठा
धुआ सा हैं
बनके चिंगारी इसे
उछल जाने दो
देखते हैं क्या 
हश्र निकलता हैं
इन कीमती अश्को का
मोतियो की
शक्ल मे
इन्हे ढल जाने दो
रास्ते गुमनाम हैं तो क्या
साथी तो पुराने हैं
हस्ते खेलते गमो से 
सब पार हो ही जाने हैं
नया रास्ता बनाएँगे
मंज़िलो को फिर से
करीब लाएँगे
आज हैं अंधेरा
घना तो क्या
कल तो सूरज
चमकेगा
नई रोशनी से 
सारा जहाँ
फिर से दमकेग़ा
पीछे ना देखना 
कोई आवाज़ भी दे 
तो भी खुद को 
ना रोकना
आज अपना हो
ना हो कल 
हमारा हैं
साथी हमारा तुमसे ये 
अटूट वादा हैं
कुछ कर दिख 
लाने का इरादा हैं
बस तुम साथ रहो
हमारे आस पास रहो
तुम हो तो हम हैं
तुम हमारे संबल हो
मित्र सच्चा वो ही हैं 
जो ना छोड़े रास्ता..
अपनो से ना वास्ता

0 Comments:

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home