आपके प्रशन का उत्तर
हमे आता हैं
जानने की शक्ति से
बड़ी हैं........
मानने की शक्ति
और मानने की शक्ति से भी उपर हैं
करने की शक्ति.......
जो सबके पास नही होती
जानते तो सब हैं
मानता कोई कोई हैं
करता तो लाखो मे कोई एक हैं...
सूर, तुलसी या कबीर जैसा
नानक, रामतीर्थ,विवेकानंद जैसा
आप भी अगर जानने की जगह
मानने लग जाए तो आधा काम पूरा
और अगर कर डाले तो
अभिशप्त नही मुक्त कहलाएँगे
और उपरोक्त संतो की तरह
जगमगाएँगे...............
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