Tuesday, October 11, 2011

"हम खुद क्या हैं"


"हम खुद क्या हैं"
पूछा कई बार अपने आप से
सही उत्तर तो मिल नही पाया 
हाँ, मन ने कई बार घुमाया
एक बार बोला इंसान हो तुम..
मैने पूछा इंसान की परिभाषा क्या होती हैं?
बोला, जो किसी के सुख दुख मे
काम आए उसे इंसान कहते हैं
मैने कहा कई बार सड़्क पे 
लोगो को गिरा देखा हैं लेकिन
ना चाहते हुए भी मुख मोड़ के 
चली आई हूँ...
कि जहाँ जा रही हूँ 
पहुचने मे देर ना हो जाए...
या कौन पोलीस के झंझट मे पड़े
मन को झटक के ...
मदद का विचार वही छोड़ आई हूँ
यानी कि मैं इंसान कहलाने के काबिल नही
अब बताओ मैं क्या हूँ?
मन बोला की तुम एक स्त्री हो..
मैने कहा ह्म्म चलो देखते हैं 
कितना खरे उतरते हैं..
खुद से पूछा किसी स्त्री के रुदन पे 
कितनी बार द्राविभूत हुई हो?
जब पड़ोस मे उस स्त्री का पति 
उसे मारता हैं तो क्यूँ नही जाती बचाने?
क्यूँ सोच के रह जाती हो 
उनका आपसी मामला हैं,
खुद सुलझा लेंगे
या फिर जब कभी कोई 
नारी प्रताड़ना की बात आती हैं
तो क्यूँ नही आती आगे?
पिछली बार जब पड़ोसी की लड़की को
दहेज के लिए जलाया गया था तो 
बयान देने से क्यूँ खुद को बचाया था
क्यूँ नही आगे कदम बढ़ाया था
यानी की कोमल स्त्री होने के सवाल 
भी तुम्हारे लिए नही हैं..
अब बताओ तुम क्या हो? 
सच बताए हम मानवता से भी नीचे हैं
ढोंग बड़े बड़े करते हैं अंदर से खोखले हैं
सच्चे मायनो मे हम स्वार्थी हैं...
जहाँ अपने स्वार्थ की बात होती हैं 
सिर उठाकर उपर आ जाते हैं
और जब बात दूसरे की होती हैं तो 
मज़बूरी का बहाना कर वहाँ से 
खिसक लिया करते हैं...........
ये मेरी ही नही सबकी बात हैं
हाँ, फ़र्क इतना हैं की मैने इसे
स्वीकार किया  ......
और आप हैं...कि मेरे बात को
हंस के टाल जाते हैं....

    • Dheeraj Kumar bahut hi sahi tarike se aapne farmaya hai ek dam hi-----------
      main to shabdhin ho gaya hun kya kahun ab???
      October 15 at 11:49am ·  ·  1 person
    • Manoj Gupta सच बात है 'कटु सत्य' , जो इसे स्ववीकार करे वोही सही है !
      October 15 at 12:02pm ·  ·  1 person
    • Suman Mishra ekdam sahee di,,,,,,
      October 15 at 12:03pm ·  ·  1 person
    • Manoj Gupta स्वार्थ के शृंगार का संसार सुविधा से सुखी है
      स्नेह के शृंगार का संसार दुनिया से दुखी है
      स्वार्थ के शृंगार की छवि लाभ लोभी आसुरी है,
      स्नेह के शृंगार की छवि त्याग तोषी माधुरी है,
      स्वार्थ ने सोना कमाया, गेह भी अपना बनाया
      स्नेह ने सोना गँवाया, गेह भी अपना गँवाया।
      October 15 at 12:07pm ·  ·  3 people
    • Aparna Khare Thanks Dheeraj Kumar ji
      October 15 at 12:10pm · 
    • Rahim Khan inshan apne aap se kai baar kai sawaal karta hai jiske jawab ke liye wah bhatktrahat hain
      October 15 at 12:10pm ·  ·  1 person
    • Aparna Khare thanks Manoj ji.....
      October 15 at 12:10pm ·  ·  1 person
    • Aparna Khare THankuuu Suman Mishra
      October 15 at 12:11pm ·  ·  1 person
    • Dev Rokadia very nicely written......
      October 15 at 12:24pm ·  ·  2 people
    • Suman Mishra मनोज जी.....बहुत सुंदर,.,,
      October 15 at 12:39pm ·  ·  2 people
    • Aparna Khare thanks Dev Rokadia ji
      October 15 at 12:40pm ·  ·  1 person
    • Manoj Kumar Bhattoa very nice....
      October 15 at 12:55pm ·  ·  1 person
    • Nitesh Kumar बहुत सुन्दर रचना... very nice...
      October 15 at 2:23pm ·  ·  1 person
    • Alam Khursheed सच्चे मायनो मे हम स्वार्थी हैं...
      जहाँ अपने स्वार्थ की बात होती हैं
      सिर उठाकर उपर आ जाते हैं
      और जब बात दूसरे की होती हैं तो
      मज़बूरी का बहाना कर वहाँ से
      खिसक लिया करते हैं...........
      ये मेरी ही नही सबकी बात हैं
      हाँ, फ़र्क इतना हैं की मैने इसे
      स्वीकार किया ......
      और आप हैं...कि मेरे बात को
      हंस के टाल जाते हैं....
      __________________________
      खरे सोने की तरह खरी सच्चाई अपर्णा जी .............वाह वाह !
      October 15 at 4:50pm ·  ·  1 person
    • Aparna Khare thanks Alam Khursheed ji
      October 15 at 4:57pm · 
    • Aparna Khare Nitesh Kumar ji thanks
      October 15 at 4:57pm ·  ·  1 person
    • Aparna Khare ‎Niranjana K Thakur ji thanks
      October 15 at 4:57pm · 
    • Aparna Khare Manoj kumar ji thanks
      October 15 at 4:57pm · 
    • Rajiv Jayaswal nice poem, thanx for tagging.
      October 15 at 7:39pm · 
    • Naresh Matia achchi rachna......sahi sawaal....par jawaab.....majboori...par majbori kyu..hum pahle aise nahi the....hume aisa banaya gayaa hain.....par yeh ek alag...topic hain...
      October 15 at 11:35pm ·  ·  1 person
    • Shamim Farooqui Waah Aparna Khare..bahut khoob..Insaa'n bhatak raha hai khud apni talaash me'n....!
      October 16 at 12:19am · 
    • Aparna Khare Thanks rajeev ji
      October 16 at 12:42am · 
    • Aparna Khare Thanks naresh ji. Lekin ham aise bane kyun?
      October 16 at 12:43am · 
    • Aparna Khare Thanks naresh ji. Lekin ham aise bane kyun?
      October 16 at 12:44am · 
    • Aparna Khare Thanks shamim ji. Jo bhatka use rasta kaun dikhaye.
      October 16 at 12:45am · 
    • Poonam Matia self analysis .........self realization ........all dealt at one place .......sach kaha .......sabhi ke liye sahi hai .par kitne sweekar karte hain ise ..........
      October 16 at 2:11am ·  ·  3 people
    • Ashish Khedikar Bahut khoob....
      October 16 at 9:15am ·  ·  1 person
    • Gopal Krishna Shukla मानव के गिरते चरित्र का सही चित्रण...... बहुत खूब अपर्णा जी....

      अब बताओ तुम क्या हो?
      सच बताए हम मानवता से भी नीचे हैं
      ढोंग बड़े बड़े करते हैं अंदर से खोखले हैं
      सच्चे मायनो मे हम स्वार्थी हैं...
      October 16 at 12:48pm ·  ·  1 person
    • Rajani Bhardwaj मेरे बात को
      हंस के टाल जाते हैं....
      ............. aksar aisa hi hota h aparna kuchh swalon ko log hans kr hi tal jate h.........
      October 16 at 3:57pm ·  ·  1 person
    • Chitra Rathore ‎...Aparna ji...ek real evaluater hai aapki ye cmpstn........mairaa ye maan naa hai ki... JO HUM DOOSARON SE CHIPAATEY HAIN... KHUD KE BAARE MAIN...WAASTAV MAIN HUM WAHEE HOTEY HAIN...
      October 16 at 8:27pm ·  ·  1 person
    • Ramesh Sharma wahh
      Monday at 8:07am · 
    • Aameen Khan Bilkul sahi likha hai....... hame khuudko nahi maalum hota ki ham khud kya hai..... Is baare may maine gujarati language may ek bahut sunder vakya padhatha...." Insaan hone kee taraf gati karta praani" .... yaani ham; manushya.... muze yeh vaakya bahut achha laga.
      Monday at 10:38am ·  ·  1 person


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