एक कठिन किताब
नारी का अंतर्मन
एक कठिन किताब
जैसा होता हैं
उसे पढ़ कर, समझ पाना
सबके बस की बात नही होता हैं
बाहर से वो जितनी नाज़ुक
नज़र आती हैं
भीतर वो उतनी ही
गहराती जाती हैं
दुख को कैसे पीना हैं
तन पे गमो का बोझ लिए
कैसे जीना हैं????????
उसे सब अच्छी तरह आता हैं
बाटती नही अपने दुख को
चुपचाप पी जाती हैं
तभी तो नारी आज भी
देवी कहलाती हैं
पति का कोपभाजन हो
या बच्चो का विभाजन
कभी विरोध नही करती
यहाँ तक की, पति के साथ साथ
समाज से मिले दुख भी सह लेती हैं
पाषण सा हृदय लेकर दुनिया मे आती हैं और
मंदिर की मूर्ति की तरह
धूप बारिश सर्दी सब मे मुस्काती हैं
लेकिन जब एक बार
विरोध पर आती हैं तो
यमराज़ से भी भिड़ जाती हैं
छीन लाती हैं सावित्री की तरह
अपना पति और पतिव्रता कहाती हैं
वक़्त पड़े तो लक्ष्मी बाई बन
अंग्रेज़ो के छक्के भी छुड़ाती हैं
जीतती हैं दोनो मुहिम
चाहे वो घर हो या रण
तभी तो नारी श्रद्धा कहाती हैं...............
- Vishaal Charchchit नारी मन की डिटेल तो आपकी कविता की साइज़ से ही पता चल जाता है अपर्णा जी.........वैसे लिखा आपने बहुत मन से है................काश ऐसी ही एक रचना कभी पुरुष मन पर भी लिखती आप !!!!Monday at 1:54pm · · 2 people
- Aparna Khare purush man ko kaise padh paungi....phir bhi I will try...thanksMonday at 1:55pm · · 2 people
- Suman Mishra APARNAA DI,,,REALLY BAHUT ACHHA LAGAA PADH KAR...SUNDER BHAAV, SPASHTVAADITAA SEY PRAKHAR,,,,LEKHAN,,Monday at 2:02pm · · 1 person
- Aparna Khare कल रात
याद आई
तुम्हारी एक बात
कि अब कभी नहीं बिछड़ेंगे,
और कल ही रात
याद आया मुझे
तुम्हारा तीखा स्वर
अब कभी मत मिलना मुझे।Monday at 2:10pm · · 2 people - Aparna Khare कल रात
एक वादा, मैंने भी किया रात से
जब तुम आओगी तो
नहीं याद करूँगी किसी को,
पर कल रात,
रात बैठी रही खामोश
और करती रही याद
मेरे साथ किसी को।Monday at 2:10pm · · 6 people - Maine usko
tapte dekha
aag jaisa jalte dekha
lohe jaisa dhalte dekha
maine usko goli jaisa chalte dekhaMonday at 2:11pm · · 2 people - Manoj Gupta Wah , bahut hi achcha varnan hai , badhaii:
नारी
अशक हूं
वक्त की पलकों पर टिकी हूं
लहर हूं
सागर की बाहों में थमी हूं
शबनम हूं
ज़मीं के आगोश में बसी हूं
चिंगारी हूं
शोला बन कर भड़की हूं
किरण हूं
सूरज में समाई हूं
लता हूं
तन के सहारे बढ़ी हूं
नदी हूं
कगार के बँधन में बँधी हूं
फूल हूं
काँटों से उलझी हूं
कोमल हूं
रुई के फाहों से सहेजी जाती हूं
धरती हूं
अंबर के चँदोबे तले फली फूली हूं
अबला हूं
पुरुष की संरक्षता में रहती हूं
नारी हूं
पुरुष व पुरुषार्थ की जन्मदात्री हूं.Monday at 2:40pm · · 1 person - Rajiv Jayaswal the inner feelings , weaknesses and powers of women , beautifully defined.Monday at 2:48pm · · 1 person
- Aameen Khan Naari ke antarman ki bahut hi badhiya details aapne likhi hai.Monday at 3:23pm · · 1 person
- Gunjan Agrawal behad gazab ka likha hai aapne Aaparna.... saachi... gazabbb kaMonday at 8:48pm · · 1 person
- Rajani Bhardwaj नारी का अंतर्मन
एक कठिन किताब.................jo na samjhe use to farsi lgti hMonday at 10:35pm · · 1 person - Naresh Matia course ki ek kitab ko samjhne ke liye logo ko pataa nahi...kitni baar padhna padhta hain....aap to human nature wo bhi female ko padhne ki bat kar rahi ho...jahaa har kissa hi ek kitaab hota hain.....aur uske andar pataa nahi kitne chapter.....to kaise koi samjh paayega....Monday at 11:43pm · · 1 person
- Kamal Kumar Nagal jeewan hi kathin kitab ka hi roop he...woman ki life & man ki life apni apni jagah rah ki kathin dagar he...Tuesday at 1:47pm · · 1 person
- Gopal Krishna Shukla वाह अपर्णा जी वाह.... नारी की व्याख्या करना कठिन कार्य है.. क्योकि नारी स्वयं में एक सम्पूर्ण संसार है...
मै इतना ही कहूँगा की.....
सम्मान जहाँ पाती है नारी-प्रतिभा जन-जीवन में
संस्कृति की लता पनपती उस धरती के उपवन में|Tuesday at 10:55pm · - Matia Poonam बहुत सुंदर चित्रण .....नारी मन की कथा और व्यथा का ......पर शायद यही सब पुरुष के मन की भी कहानी है .........जो अभी कहनी सुनानी बाकी है .......:)))Yesterday at 1:20am · · 1 person
- Rahim Khan aap ne nari ke dard auruske man ki pida ko bahut achhi tarahlikha hain20 hours ago · · 1 person
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