Monday, November 14, 2011

पुराने रिश्ते


तू बुनता हैं ताने बाने
लेकिन कोई गाँठ गिरह
नही देती दिखाई..........
क्या तेरा तागा नही टूटता
या मशीन कोई खास मंगाई


धरती पे रिश्ते पैसो से बुने जाते हैं
जिसके पास हो ज़्यादा पैसा
वो सबके दोस्त बन जाते हैं
गर ना हो घर मे लंबी गाड़ी 
सगे रिश्तेदार भी मुँह मोड़ लेते हैं
किनारे से निकल जाते हैं
जान के भी अंजान होने का 
नाटक करते हैं....


अब तो यहाँ ये आलम हैं
रोज़ बुनते हैं रिश्ते नये
पुराने फिसल फिसल जाते हैं
जैसे हो पुरानी डायरी के पीले पन्ने
यू चिंदी चिंदी हुए जाते हैं
झाड़ कर धूल बरसो की 
जब कभी ज़रूरत हो तो
पुराने रिश्ते नये किए जाते हैं





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