Monday, January 16, 2012

अम्मी अब्बू के सपनो का बेटा....


अम्मी ने कहा मत बुन खवाब ....ठीक हैं
लेकिन क्या करूँ, खवाब बिना जिंदगी
जिंदगी नही लगती......
लगता हैं शमशान सी हैं जिंदगी
मैने कहा हम छोटे लोगो ने अगर चार पैसे कमा भी लिए तो
उनसे कहाँ काम चल पाएगा
माँ इतने पैसो से तो घर का चूल्हा भी
ठीक से नही जल पाएगा.....

अब्बू मैं नालयक नहीं लेकिन आप खुद बताओ
आप आठ बच्चो के बीच कहाँ से लाते इतना पैसा
जो मुझे बनाते कलक्टर..बाकी बच्चे
क्या यू ही सुला देते?

माँ तू ठीक कहती हैं हरफ़ से नही बनता खाना
लफ़जो से नही जलता चूल्हा, ग़ज़ल और शेर नही खाए जाते
लेकिन ये सब गुनगुनाए जाते हैं....भरे पेट..
अम्मी मेरी ग़ज़ल पेट की आग
नही बुझा सकती तो  क्या
दिल का दर्द तो भुला सकती हैं
पेट की आग तो कहीं भी बुझ जाएगी
मन की भूख कहाँ से खाना लाएगी?

अब्बू अगर मेरे लिखे हरफ़
मुकदर के कोरे कागज को
रंगीन कर पाते तो ज़रूर लिखता
कुछ हरफ़ अपने लिए, अपने वालो के लिए
नही फिरता यू मारा मारा..रोज़ी रोटी के लिए

7 Comments:

At January 16, 2012 at 11:51 PM , Blogger अपर्णा खरे said...

thanks Shastri ji....ap hamare blog pe aye....jaroor milenge charcha manch pe

 
At January 17, 2012 at 12:56 AM , Blogger महेन्द्र श्रीवास्तव said...

सुंदर रचना
पहली बार आया हूं, यहां अच्छा लगा।

 
At January 17, 2012 at 1:36 AM , Blogger राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' said...

उम्दा रचना .....अपर्णा जी बहुत ही बेहतरीन शव्दों का प्रयोग किया है आप ने
अब्बू अगर मेरे लिखे हरफ़
मुकदर के कोरे कागज को
रंगीन कर पाते तो ज़रूर लिखता
कुछ हरफ़ अपने लिए, अपने वालो के लिए
नही फिरता यू मारा मारा..रोज़ी रोटी के लिए

 
At January 17, 2012 at 1:42 AM , Blogger अपर्णा खरे said...

thanks Rajendra ji.....bahut achha laga apko apne ghar me dekh kar....

 
At January 17, 2012 at 1:43 AM , Blogger अपर्णा खरे said...

thanks Mahendra ji.....rachna pasand karne ka shukriya

 
At January 17, 2012 at 1:51 AM , Blogger प्रवेश कुमार सिंह said...

पेट की आग तो कहीं भी बुझ जाएगी
मन की भूख कहाँ से खाना लाएगी?

क्या खूब कही .....

 
At January 19, 2012 at 6:07 AM , Blogger अपर्णा खरे said...

thanks apka bahut bahut swagat..achha laga apko blog pe dekh kar

 

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