Monday, April 2, 2012

खुल गये हैं द्वार दिल के

सारे रास्ते बंद थे
खिड़किया दरवाज़े भी बंद थे
नही था किसी का आना जाना
सब तरफ प्रतिबंध थे
लगाई होगी आवाज़ बहुत
लेकिन नही पहुच सकी मुझ तक
क्यूंकी तुम्हारे लिए मेरे मन मे
कई तरह के द्वंद थे
जिन्हे खोलना ज़रूरी था
तुमसे बोलना ज़रूरी था
वरना तुम्हारा प्यार ...
बह जाता पानी की तरह
और रह जाता ख़ालीपन
किया द्वंद को दूर अब मैने
तुमसे मिल कर...
खुल गये हैं द्वार दिल के
जो अब तक बंद थे..






1 Comments:

At April 4, 2012 at 3:01 AM , Blogger संजय भास्‍कर said...

सुंदर शब्दावली ......रचना के लिए बधाई स्वीकारें.

 

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