जिस पथ पे
कोई जाता नही हो
वो पथ तेरा
दर्द की बात
बह उठे ज़ज्बात
खूब कही आज
बेवफ़ाई मे कुछ ऐसा आलम आया हैं
याद नही अब कुछ भी उसको..........
सब कुछ पराया हो जाता हैं..
दर्द मे डूबी परछाई क्या दर्द सुनाएगी
आह भी भरेगी तो..सब कह जाएगी
फूल था अपने वचन का पक्का जो कहा कर डाला हैं
खुश्बू के संग थोड़ी सी सोंधी माटी भी ले आया हैं..
गुस्सा आना लाजिमी हैं..
पछताना भी लाजिमी हैं
इंसान हो ना..इंसान
नज़र आना लाजिमी हैं
कैसे छोड़ देता तन्हा तुम्हे तुम्हारा मन
चाहता जो था तुम्हे सदियो से...
सड़को का सफ़र
तेरे बगैर
ना अब मुमकिन
वीरान को आबाद करना था
तुम्हे मुझको शिद्दत से याद करना था
तेरा साथ की बात
अब न याद
हैं डरावनी रात
वो पतंगे नही..मच्छर हैं..जो हर जगह खुद का अस्तित्व रखते हैं
साँस भी लेते हैं तो एहसान औरो पे करते हैं..
तेरा हाथ
मेरा साथ
हैं खवाब की बात
खिलखिलाता था जीवन
ना जाने क्यूँ
आज हुई जम के बरसात
प्यार से प्यार को आवाज़ लगाओ...हे मेरे प्यार अब लौट भी आओ
सुन तेरा गम
आँखे हुई नम
क्या सोचु मैं
संग तू हरदम
posted by अपर्णा खरे @ 12:47 AM 0 Comments
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