Monday, September 24, 2012

प्रिय एक बार आ जाओ.....




औरत का सूनापन ............तुम क्या समझ पाओगे...
बिना पति के उसका जीवन.... तुम क्या समझ पाओगे
तुम नही तो.................... नारी का कोई शृंगार नही..

किसी के हृदय मे ..........................वो प्यार नही...
तुम थे जीवन था..तुमसे खाना.......तुमसे रहना....
तुमसे ही सब ............दुनिया मे भी व्यवहार था...
अब कोई नही आता हैं..घर सूना सूना रह जाता हैं..
महीनो बीत जाते हैं..नही लेता कोई सुधि......हमारी..
बच्चा भी बेचारा...............रो रो कर अकुलाता हैं..
तुम्ही से थी सुबह हमारी ...तुमसे ही तो शाम थी..
तुम लेते थे सारे निर्णय......मैं तो बस तुम्हारी छाँव थी...
कौन लेगा ये सब निर्णय.......कुछ तो तुम बतला जाते..
जाने से पहले प्रियवर......कुछ तो हमसे कह कर जाते.....
कुछ ना कहने का दुख .........हरदम हमे रुलाएगा.....
किस से कहूँगी अपनी पीड़ा, अब कौन हमे समझाएगा..
प्रिय हो सके तो आ जाओ..मेरी खातिर ना..अपनी
बूढ़ी माँ और बेजान होती अपनी बेटी की खातिर..
कुछ तो कह कर जाओ.....नही रह पाएँगे तुम बिन..
तुम तो ये जानते हो..क्यूँ करते हो आँख मिचौली..
क्या हम सब को अच्छी तरह नही जानते हो....
अब और ना कुछ कह पाउगी..कह दिया हैं मैने तुमसे..
तुम्हारे बिना ना जी पाउगी..
साथ लिए थे जो संग फेरे उन्हे तो निभा जाओ..
प्रिय एक बार आ जाओ......

0 Comments:

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home