अपनी ग़ज़ल मे आग लगाओ... अंधेरो से उपर आ जाओ..
अपनी ग़ज़ल मे आग लगाओ...
अंधेरो से उपर आ जाओ..
नही कोई पराया..समझने की बात हैं....
दिल हैं अगर उसका..तो कहने की क्या बात हैं..
आँखो ने अब तक किसी को भी सजदा नही किया..
जब से तुझे देखा जी भर के एक बार..................
माँ की हर बात निराली हैं..
देती हैं जी भर के दर पे आया जो सवाली हैं..
दम तेरा निकालने ना देंगे..
रोक लेंगे खुदा को भी.....
आगे बढ़ने ना देंगे..
ग़ज़ल कहती हैं लगा दे आग पानी मे...
तुम हो की हर वक़्त डरते रहते हो...
किसने किसको देखा हैं.....
बात तो हैं बस बंदगी की..
समुंदर मे था इतना पानी..मुझे क्या पता वो रोया हैं सारी रात....
मोहब्बत तो उसने की थी....किसी सीपी के साथ...
प्यार मे रहो..प्यार से रहो..
दोनो खुदा की इबादत हैं...
नज़रो से पिला देना...
लेकिन पानी मे आग लगा देना
ना रहे कुछ भी बाकी
इश्क़ मे..................
ऐसा एक मंज़र ला देना..
दिल ही तो हैं..
कब किस पे आ जाए...
क्या कह सकते हैं
समुंदर को पसंद हैं सीपी...
हम क्या कर सकते हैं..
तुमने जो लिखा हमारा नाम...
मुझे लगा सूरज लाल हो आया हैं..
आँखो मे उतर आई हया की लाली..
तुमने क्या पैगाम दे डाला हैं..
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