Dedicated to my loving Papa
शाम होते ही पंछी भी
घर को लौट आते हैं.....
जाते हैं जो छोड़ कर हमेशा को..
ना जाने कौन से आकाश मे
विलीन हो जाते हैं..............
शाम के आते ही...याद आ जाता हैं
सब कुछ....इंतज़ार की वो घड़िया
जो बिताया करते थे तुझे याद करते हुए..
देखा करते थे रास्ता...अब आएगा वो
थका मांदा दुनिया से जूझ कर..
रख देगा मेरे काँधे पे सर............
दिन की सारी बाते बताएगा..........
अच्छा बुरा सब हंस हंस के सुनाएगा..
फिर पिएँगे शाम की चाय ....
बालकनी मे बैठ कर..
सारा दिल वो मेरे पास आ कर हल्का कर जाएगा..
लेकिन ये क्या ?
मुझे तो अपनी सोच को देना होगा विश्राम
कैसे आएगा वो...जो चला गया हो दुनिया छोड़ कर
चाह कर भी वो आ नही सकता..
नही दे सकता वो सहारा..जबकि छोड़ गया हैं
अपना दिल मेरे ही पास..
जो अब भी उसी की याद मे धड़कता हैं
शाम होते ही ना जाने क्यूँ अब मेरा दिल
वही जाकर भटकता हैं..दरवाजे से..आँख
अब भी नही हटती हैं...सांसो की गति भी तेज़ हो रहती हैं...
लेकिन पता हैं मुझे अब वो आ नही सकता...
बस यादों की आग मे झुलसा सकता हैं..
आ नही सकता..
मेरी कविता मे ये भाव तब उभरे थे जब मेरे पिता जी हमे असमय छोड़ कर दुनिया से चले गये थे..रोज़ शाम होते ही हम सब इसी तरह अपने पापा का इंतेज़ार किया करते थे..कि वो अब आ रहे होंगे जबकि हमे पता था..वो अब कभी नही आएँगे...सच समय भी कैसे कैसे खेल दिखाता हैं ..कभी रुलाता हैं कभी हसाता हैं...
1 Comments:
Mere Mitra Champu Champak lal ka jawab..thanks Champu
महसूस कर मुझे
आज भी मैं तुझसे मिलने अक्सर आता हू
शरीर का दामन ज़रूर छूटा है
पर आज भी तुझे देखे बगैर रह ना पाता हू
महसूस करना मुझे बालकनी में बैठे पंक्चियो में
मैं आज भी अपनी बिटिया को देख चहचाहाता हू
घूमता हू जहाँ भर के आसमानो में
पर दाना आज भी अपने घर का ही खाता हू
मत उदास रहना भूले से भी कभी
तुझे उदास देख मैं भी उदास हो जाता हू
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