Saturday, June 29, 2013

सौ बरस भी कम पड़ जाते हैं...क्यूँ सच हैं ना..

दो दिन दो सदियो जैसे हो जाते हैं...
जब वो हमसे बिछड़ जाते हैं..
मिल जाए तो सौ बरस भी कम पड़ जाते हैं...क्यूँ सच हैं ना..

मेरे खवाब पहले आए या मेरा नूरानी चेहरा...
कुछ तो बताओ ना..दिल मे मुझको बसाने वाले....


आबोला प्रेम हैं उनका...खामोशी बोल देती हैं..
कौन कहता हैं मोहब्बत बेज़ुबान होती हैं..


यही तो मुसीबत हैं मेरे यार..
तुम भी खामोश...हम भी खामोश...
इजहारे मोहबत भी ज़रूरी हैं.....
प्यार को अंजाम देने के लिए...

हाहहाहा....तुम्हारी यही अदा तो मुझे भाती हैं..
ना चाहते हुए भी तुम्हारे करीब ले आती हैं..
(ना चाह कर भी चाहना तुम्हे...बहुत अच्छा लगता हैं..)

दो का करना आठ तो ..जल्दी जाए सीख..
मानवता का पाठ तो..सीखे कैसे चार सौ बीस

इंसान की बेकली...कहीं ख़त्म ना हो जाए..
बादल अब कहीं और जाओ...मेरे यहा नही आओ..

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