Thursday, October 10, 2013



अपना सोचा भी कहाँ हुआ करता हैं..
दरवाजे, खिड़की, झरोखा, झिर्री....
सब खुद ही तो बंद किए थे मैने..
अब हवा की दरकार..क्यूँ?????

4 Comments:

At October 10, 2013 at 11:45 PM , Blogger nayee dunia said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आप की इस प्रविष्टि की चर्चा शनिवार 12/10/2013 को त्यौहार और खुशियों पर सभी का हक़ है.. ( हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल : 023)
- पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर ....

 
At October 12, 2013 at 10:55 AM , Blogger रश्मि शर्मा said...

खूब..

 
At October 13, 2013 at 11:03 PM , Blogger अपर्णा खरे said...

bahut bahut shukriya Upasna di..

 
At October 13, 2013 at 11:06 PM , Blogger अपर्णा खरे said...

Bahut bahut abhaar...Rashmi ji..

 

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