Monday, September 9, 2013

मेरा बचपन...

बचपन बीता...
टूटे सपने...
खेल खिलौने...

छूटे अपने..
ना हैं गुड्डा, 

ना हैं गुड़िया...
ना ही हरी काँच की  

टूटी चूड़िया.
छोटे छोटे बर्तन सारे....
चूल्हा चक्की...

चिमटा ...तवा
नही रहे अब ये 

अपने सारे....
मेरा वो 

डाक्टर का सेट...
अब कोई काम 

ना आया हैं....
चला गया वो

मेरा बचपन...
याद बहुत वो आया हैं...

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