Tuesday, October 8, 2013

विचारों की ठंड

सोचते सोचते 
खुद से खुद को..
विचारों की पहाड़ियों पे
बहुत दूर निकल आया हूँ..
विचार हैं कि 

सुनसान रास्ते की तरह
ख़त्म होने का 

नाम ही नही लेते..
एक के बाद 

दूसरा विचार...
ठंडी हवा के 

झोंके की तरह
मन को छूते ही जा रहे हैं..
और 

ये मन हैं कि
उन विचारों की ठंड से
सिहरा जा रहा हैं..

तुम छू लो आसमान...
बस इतनी सी खावहिश हैं
बढ़ते रहो हमेशा...
इतनी सी चाहत हैं..

4 Comments:

At October 8, 2013 at 9:38 PM , Anonymous Anonymous said...

tum choo lo aasmaan .....bass itnee see khwahish hai , badhtee raho hamesha ,,bassss itnee see chahta hai ....nice n very nice line .

 
At October 10, 2013 at 12:08 AM , Blogger नीलिमा शर्मा Neelima Sharma said...

आपकी इस उम्दा रचना को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक -२२ निविया के मन से में शामिल किया गया है कृपया अवलोकनार्थ पधारे

 
At October 10, 2013 at 1:45 AM , Blogger अपर्णा खरे said...

Shukriya Neelima Ji..

 
At October 10, 2013 at 1:45 AM , Blogger अपर्णा खरे said...

Bahut bahut Abhaar..

 

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