विचारों की ठंड
सोचते सोचते
खुद से खुद को..
विचारों की पहाड़ियों पे
बहुत दूर निकल आया हूँ..
विचार हैं कि
सुनसान रास्ते की तरह
ख़त्म होने का
नाम ही नही लेते..
एक के बाद
दूसरा विचार...
ठंडी हवा के
झोंके की तरह
मन को छूते ही जा रहे हैं..
और
ये मन हैं कि
उन विचारों की ठंड से
सिहरा जा रहा हैं..
तुम छू लो आसमान...
बस इतनी सी खावहिश हैं
बढ़ते रहो हमेशा...
इतनी सी चाहत हैं..
खुद से खुद को..
विचारों की पहाड़ियों पे
बहुत दूर निकल आया हूँ..
विचार हैं कि
सुनसान रास्ते की तरह
ख़त्म होने का
नाम ही नही लेते..
एक के बाद
दूसरा विचार...
ठंडी हवा के
झोंके की तरह
मन को छूते ही जा रहे हैं..
और
ये मन हैं कि
उन विचारों की ठंड से
सिहरा जा रहा हैं..
तुम छू लो आसमान...
बस इतनी सी खावहिश हैं
बढ़ते रहो हमेशा...
इतनी सी चाहत हैं..
4 Comments:
tum choo lo aasmaan .....bass itnee see khwahish hai , badhtee raho hamesha ,,bassss itnee see chahta hai ....nice n very nice line .
आपकी इस उम्दा रचना को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक -२२ निविया के मन से में शामिल किया गया है कृपया अवलोकनार्थ पधारे
Shukriya Neelima Ji..
Bahut bahut Abhaar..
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