Manisha Kulshestha...dwara lautaya gaya sammman
जाओ लौटा रही हूँ मैं..
तुम्हारा दिया हुआ सम्मान...
मेरी कला, मेरी लेखनी..
तुम्हारे सम्मान की मोहताज नही..
मेरी लेखनी तो मेरे
अंदर की आवाज़ हैं...
जो शब्दो मे बहकर
बाहर निकल आती हैं....
देती हैं नये आयाम ..
मेरे विचारो को.......
तुम सब के भीतर..
तूफान खड़ा कर जाती हैं..
नही चाहिए...तुम्हारी खैरात..
किसी कलावीहीन को दे देना..
खुश हो जाएगा..
आनी उपलब्धि पे वो कम से कम
जश्न तो मनाएगा..
मैं समर्थ हूँ...
मुझमे अपना बल हैं..
खड़ी रह सकती हूँ अपनी टाँगो पे..
नही चाहिए..तुम्हारा सम्मान रूपी संबल हैं..
ठुकराती हूँ इसे...अपने पास रखना..
अब किसी लेखिका के हृदय से ..
कभी मत खेलना..
तुम्हारा दिया हुआ सम्मान...
मेरी कला, मेरी लेखनी..
तुम्हारे सम्मान की मोहताज नही..
मेरी लेखनी तो मेरे
अंदर की आवाज़ हैं...
जो शब्दो मे बहकर
बाहर निकल आती हैं....
देती हैं नये आयाम ..
मेरे विचारो को.......
तुम सब के भीतर..
तूफान खड़ा कर जाती हैं..
नही चाहिए...तुम्हारी खैरात..
किसी कलावीहीन को दे देना..
खुश हो जाएगा..
आनी उपलब्धि पे वो कम से कम
जश्न तो मनाएगा..
मैं समर्थ हूँ...
मुझमे अपना बल हैं..
खड़ी रह सकती हूँ अपनी टाँगो पे..
नही चाहिए..तुम्हारा सम्मान रूपी संबल हैं..
ठुकराती हूँ इसे...अपने पास रखना..
अब किसी लेखिका के हृदय से ..
कभी मत खेलना..
1 Comments:
ऐसा क्यूँ हुआ??......
ताश के पत्ते सा वो इस हवाके संग
ढह गया ..........!!!!!!!!
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