पिछले बरस...
रिश्तो को पाला पोसा बड़ा किया...
आई आँधी वक़्त की...
उसने उन्हे लील लिया...
जबकि कहीं से एक भी शाख
कमजोर ना थी...जो टूट जाती...
चटाख से...किसी के खीचने से...
लेकिन इस साल ऐसा भी हुआ..
शायद नसीब को यहीं मंज़ूर था..
तुमने कहा...
कुछ बीमार दरख़्त गिरे..
उनका तो गिरना ही अच्छा...
वरना
जूझते रहते जिंदा रहने के लिए
वो अपने आप से....
और तुम उनसे..
कुछ चेहरे जो नक़ाब मे थे ....
उन्होने जताई
अपनी असलियत...
तुम्हारा भरम टूटा...
अपनी सोच पे तुम्हे तरस आया..
सच अच्छा ही हुआ..
जो खुल गई तुम्हारी आँखे..
गीली मिट्टी पे
रखा जो तुमने पाव..
यक-ब-यक .लड़खड़ाया......
गिरे नही तुम
संभाल लिया अपने आपको...
लेकिन एहतियात के तौर पे ......
तुमने रख दिया एक चिराग......
मिट्टी सूखने की खातिर.................
क्या गीली मिट्टी रिश्तो वाली....
जज्बातों से भरी
एक चराग़ से सूखेगी..नही ना...
फिर क्यूँ छोड़ आए तुम
मुझे अकेला... कब्र मे...
मुझे घुटन होती हैं वहाँ..
तुम आओ तो रौनके..बढ़ जाए......
फिर से
मेरी गीली कब्र भी रोशन हो जाए..
तुम्हारे मुट्ठी मे दबे बीज..
कैसे फूलेंगे..फलेंगे
मिट्टी मे तो इन्हे रोपना ही होगा....
वरना...
गिर कर बर्बाद हो जाएँगे ये
नन्हे बीज....
ऐसा करो अबकी बार...
ज़मीन भी तुम्हारी... रोपना भी तुम.....
साजो संभाल भी तुम्हारी....
देखे कैसे नही फूलते
ये बीज अबकी बरस....
3 Comments:
बहुत सुन्दर.
नव वर्ष की शुभकामनाएँ !!
नई पोस्ट : नींद क्यों आती नहीं रात भर
);
Bahut bahut shukriya
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