एक स्त्री से दूसरी स्त्री
जिस दिन एक स्त्री का दर्द
दूसरी स्त्री समझ जाएगी..
टूट जाएँगी सारी ग़लत परंपराए..
पुरुषो की एक नही चल पाएगी..
जो चलाता हैं हुकुम..
उसकी बेचारगी पे..
खुद बेचारा हो जाएगा..
नही सहेगी वो अपमान..
अपने सामने दूसरी स्त्री का..
तलवार उठाकर जुट जाएगी
ख़तम हो जाएँगे गंधाते ये सारे
अमर्यादित रिश्ते...
जब स्त्री अपने पे आ जाएँगी
एक घर मे दो स्त्री
तब सवाल ही नही होगा
नही रहेगी एक कमरे के बाहर..
एक कमरे के भीतर
एक से ही निभाना होगा अपना धर्म..
संभल जा ए पुरुष...
तेरी चतुराई काम नही आएगी..
जाग जाएगी जब स्त्री...
तोड़ सारे बंधन...
जब वो सामने आ जाएगी
करेगी वो रक्षा
अपने संबंधो की ..
एक स्त्री से दूसरी स्त्री
कभी ना टकराएगी..
1 Comments:
nice.....
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