मैं औरत हूँ
मुझे अबला
मत समझो
मैं औरत हूँ
जो करती है
तुम्हारी बातों का
प्रतिकार
देखती है
तुम्हारे विकार
नहीं मिलाती तुम्हारी
बेकार की बातों में
हाँ में हाँ
नहीं सहती तुम्हारे
लात घूसे और कोड़े
मुझे पता चल गई है
अपनी हदे
नहीं रहना अब
तुम्हारे सामने
यु ही मिमियाते हुए पड़े
खुला आकाश मुझे भी
दिखाई देने लगा है
खुली हवाओं से
मुझे भी आने लगी है
अपने पसीने की सुगंध
चाहे मैं पढ़ी लिखी हूँ या अनपढ़
शान से अपना गुजरा कर लुंगी
नहीं फैलाउंगी
अपना हाथ किसी के आगे
हंस के मेहनत करुँगी
नहीं करुँगी तुम्हारी
बेजा बातों के लिए समझौता
अब तुम्हारी एक नहीं सुनूंगी
सुना तुमने
मैं औरत हूँ
अब नहीं झुकूँगी
न ही तुम्हारे कहने से रुकूँगी
मुझे छूना है आकाश
बनानी है अपनी पहचान
देना है तुम्हारी हर बात का
मुहतोड़ जवाब
ताकि तुम भी समझ जाओ
अब मैं बेबस
कमजोर
लाचार नहीं
तुम्हारी मोहताज़ नहीं
4 Comments:
nice poem
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AAMEEN ..........
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 23 जुलाई 2016 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको . कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
https://www.facebook.com/MadanMohanSaxena
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