Saturday, November 3, 2012

तुम्हारी तकिया




तुम्हारी तकिया को खोला मैने...
आँसू की नदिया निकल पड़ी...
मैने रोका उन्हे तो तुम्हारे पास
जाने को मचल उठी............
मैने बोला दर्द मुझे दे दो..
आँसू की नमी को भी
दोस्त की सौगात समझ
सर माथे पे लगा लूँगी
लेकिन वो खुद्दार थी तुम्हारी तरह
नही मानी..और छिटक कर चली गई..
फिर से तुम्हारे पास ....कभी ना आने के लिए


2 Comments:

At November 4, 2012 at 1:54 AM , Anonymous Anonymous said...

This comment has been removed by the author.

 
At November 4, 2012 at 9:58 AM , Blogger अपर्णा खरे said...

bahut sunder....mat ho udas..

 

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