अम्मा की पूंजी - लघु कथा
आज अम्मा को गए पूरे तीन दिन हुए थे। पूरा घर इकट्ठा हुआ था खास कर अम्मा के तीनों लड़के जो अम्मा की आंख के तारे थे
अम्मा बड़े गर्व से सबके सामने सीना तान के कहती मैंने लड़के नही लट्ठ पैदा किये है देखना सब कैसे शान से मेरी जिंदगी चलवाएंगे। बड़ा अभिमान था अम्मा को अपने बेटों पे।
सब काम सुचारू रूप से चल रहा था पूजा समाप्त हुई तो सब खाने खिलाने में लग गए धीरे धीरे घर खाली होने लगा, सिर्फ घर के लोग बचे अब बड़ी भाभी पापा के पास आई और बच्चे की नौकरी का बहाना बनाकर चलती बनी ऐसे मौके पे पापा कहते भी तो क्या?
अब अम्मा की प्रिय मझली बहु की बारी थी उन्हें भी बैंक के कुछ जरूरी कागज जमा करने थे सो उन्होंने भी पापा से माफी मांग कर दरवाजे की राह पकड़ी भाई तो वैसे भी जोरु के गुलाम।
तीसरे बेटे का अभी अभी ट्रांसफर हुआ था सो उसे तुरंत ड्यूटी जॉइन करनी थी उनके रुकने का कोई सवाल ही नही। रह गई हम तीन बहने जिन्हें माँ ने कभी बेटो के आगे कुछ समझा ही नही। आज उन्ही बेटो के पास पिता के दुख को बांटने का वक़्त नही था। हम बेटियां माँ की अनेक झिड़कियां सुन ने के बाद भी पिता के साथ थी शायद माँ ये बात कभी समझ ही न पाई बेटियां दिल की जाई होती है बेटे दौलत के जाएँ।
अपर्णा खरे 29.5.2018
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