हर इल्जामात का शुक्रिया
चोट पे चोट
दिए जाने का शुक्रिया
ए दोस्त तेरा इस अदा से
करीब आने का शुक्रिया
कत्ल भी किया और
इल्ज़ाम भी ना लिया
कैसे किया?
प्यार भी किया तो
ऐसा किया............
मुझे इस तरह टूट के
चाहने का शुक्रिया......
मेरे प्यार को आज़माने का
शुक्रिया
मेरी निष्ठा और ईमानदारी को
आस्तीन का साँप
बनाने का शुक्रिया
मेरे विश्वास को एक पल मे ठोकर
लगाने का शुक्रिया....
किस किस बात का करूँ शुक्रिया
ए दोस्त तेरी हर बात,
हर इल्जामात का शुक्रिया
0 Comments:
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home