कैसा ये संसार..
अपनापन ना प्यार ..
हाय है, कैसा ये संसार..
सब अपने स्वार्थो मे डूबे..
अलग अलग राहो को ढूँढे..
कैसे किसको मूर्ख बनाए..
ऐसी मंन मे राह बनाए..
अपनो को छले..
खुद से ही धोखा ये खाए..
फिर भी करे अहंकार..
कैसा ये संसार…
ना अपनापन ना प्यार..
हाय कैसा ये संसार..
सभी है अपने, नही पराए..
कौन, किसे, कैसे समझाए..
होता जो नुकसान किसी का..
उसी मे अपना भी तो घाटा..
पर कोई ये समझ ना पाए..
जान रहे अंजान….
देखो धोखे का संसार…
ना अपनापन ना प्यार..
हाय कैसा ये संसार..
आओ हम सब एक हो जाए..
साथ मे सुख और दुख मनाए..
कड़वी सारी यादे भुलाए..
संग मे बैठे..
संग मे खाए..
लूटे सबका प्यार..
हो एकता ही आधार..
यही है जीवन का त्योहार..
ऐसा ये संसार…
सखी री सुंदर ये संसार..
ऐसा अपना प्यार…
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