लोहा भी चाँदी बन जाता.
लोहा भी चाँदी बन जाता..
सह करके आघातो को..
क्यूँ मनुष्य दिन भर घबराता..
दुनिया के आघातो से..
रेल की पटरी पूरी काली..
कितनी तपस्या करती है..
उपर से उसके रेल गुज़र के ..
उसको चमकाया करती है..
दूर से वो प्रतिविम्बित होती..
चाँदी की पटरियो सी..
पर ये तो वो ही जाने..
सहा है कितनी मुसीबतो को..
हम भी जब है सहते
जीवन की कठिनाइयो को..
तभी चमकते..
तभी है बनते........
सोना भी है..आग को सहता..
तभी निखरता..चमकता है..
हम भी बस यू ही निखरे …
ऐसी अपनी कामना है………..
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