बँधी रहे पतंग संग डोर.
बँधी रहे पतंग से डोर..
खिचा रहे मंन गुरु की ओर..
बनू पतंग मैं उड़ू गगन मे..
मस्त फिरू मैं नील गगन मे..
पर प्रभु रहे हम पे सिरमौर..
ऐसी अपनी हो जीवन डोर..
काम क्रोध कुछ ना हो मंन मे..
मंन रहे हमेशा नई तरंग मे..
लोगो को खुश करना हो..
अपनो के संग चलना हो..
करू प्रगट मैं सदा प्रभु को..
ना हो मंन मे कोई शोर..
खिचा रहे मंन प्रभु की और..
खिचा रहे मंन गुरु की और
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