संत कही जाते नही
संत कही जाते नही
वो तो जाते है
निज धाम
जब दुनिया मे उसका
पूरा हो जाता है काम
तो वो अपनी इंद्रियो को
समेट कर पा जाते है
चिर विश्राम
संत कही जाते नही
वो तो जाते है
अपने धाम
संत तो कही ना जाकर
अपने भक्तो के
दिल मे उतर जाते है..
एक एक को
ज्ञान सुनाकर
आत्मकार बना जाते है..
जैसे सब चाहते है
नया कपड़ा
वैसे ही संत भी
पुराने चोले को छोड़कर
नया रूप धारण कर
बार बार धरती पे
आते है..
जग मे नया
प्रकाश फैलते है
प्यार की नई
दुनिया बसाते है
सब जगह है
परमात्मा
यही दिखाते है...
और अंत मे पा
जाते है अपना राम
संत कही जाते नही
वो तो जाते है
अपने धाम
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