मुख यात्रा
मुख हरदम ही चलता हैं
दुनिया के दुख भरता हैं
जब चलता ये बोलने की खातिर
खड़ी फ़सादे करता हैं....
मुख हरदम ही चलता हैं
जब चलता खाने की खातिर
नई बीमारिया गढ़ता हैं....
मुख हरदम ही चलता हैं
बोलना हो या खाना
बड़ी बीमारी दोनो हैं
दोनो से ही हमे हैं बचना
सुंदर जीवन जीना हैं
बोलना उतना जितना ज़रूरी
खाओ उतना जितना मज़बूरी
फिर देखो अपने जीवन को
होगा स्वर्ग से सुंदर ये
घटेगी जीवन की मुश्किले
बस आगे आगे बढ़ना हैं
मुख....हरदम ही चलता हैं
नई उलझने गढ़ता हैं.......
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