Monday, July 11, 2011

फिर रिश्ते कहाँ रिश्ते रह जाएँगे????



तुमको देखा तो दिल मे 
ये विचार आया
क्या यही अपना था
जो आज हैं पराया
फिर दिल ने 
दिल को समझाया
कल की बात
कल पे छोड़ दो....
रिश्तो को एक नया मोड़ दो
वक़्त और हालात 
एक से नही रहते..
सब तुम्हारे साथ चले
ये किसी  पे
ज़ोर नही दे सकते
अपनी बीमार 
इस रूह का बोझ
खुद ही उठाना होगा
लोग कहाँ मेरा बोझ 
सह पाएँगे....
वो तो मेरा दम 
निकलते ही मुझे
दफ़ना आएँगे.....
फिर रिश्ते कहाँ रिश्ते 
रह जाएँगे????

2 Comments:

At July 11, 2011 at 3:24 AM , Blogger Manoj Gupta 'Mannu' said...

वो रिश्ता जो अनजान था,अनाम था,
गैरजरूरी सा और बेकाम था,
वो बे-मुकाम और बे-आयाम था,
हम उस रिश्ते में या वो हम में तमाम था!
हमें कुछ भी पता नहीं करना था!


श्रद्धा,समर्पण और बस एक विश्वाश था,
बिना किये जो हुआ वो एक प्रयास था,
देखो सच्चा होकर भी बस एक कयास था,
वो रिश्ता तो आम पर उसमे जरूर कुछ ख़ास था!
सच में हमें कुछ भी पता नहीं करना था!


लगता है अब भी बात अधूरी ही कह पाये है,
सोच मेरी नहीं तो क्या कोई अरमान पराये है,
या कोई सपन-सलोने है जो बस हमीं ने सजाये है,
इतनी बातो के बाद भी अब ये ख्याल कहाँ से आये है,
कुछ भी हो हमें कुछ भी पता नहीं करना है!

 
At July 11, 2011 at 3:26 AM , Blogger अपर्णा खरे said...

bahut sunder....dhanyawaad manoj ji

 

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