नारी एक : रूप अनेक
१. दुनिया मे आँखे खोली
खुद को तेरी गोद मे पाया
तेरा स्पर्श इतना अनूठा था कि
सारी उमर भूल ना पाया...
माँ हर पल ढूंढू तेरा साया
२. तीन साल का हुआ तो खुद को स्कूल मे पाया
वहाँ भी छात्र के रूप मे खुद को तेरे सामने पाया
तेरा वो रूप भी अनोखा था.....
कभी कभी तो कुछ भी समझ नही आता था
लेकिन बस तुझे देखा करता था..
३. यूँ ही कुछ वर्ष बीते
एक दिन स्कूल से लौटा तो
माँ के हाथ मे एक रुई सा कोमल बच्चा था
सब बोले तुम्हारी बहन हैं
बहन के रूप मे भी नारी ...
तुम्हारा ये रूप बहुत अच्छा था
४. खेल खेल मे बड़ा हो गया
लड़ता रहा झगड़ता रहा
कद मे पापा से भी उपर निकलता गया
कॉलेज मे एक सच्चा दोस्त पाया
वो तो था मेरा हम साया
कभी समझती, कभी समझाती
माँ की तरह हक़ जतलाती
लेकिन पता नही कब वो वो दोस्त का रिश्ता
अपनो मे बदल गया
इसका पता तब चला
जब लगा जी नही सकूँगा
उसके बगैर....
फिर हुआ परिवार से छोटा सा विद्रोह
और प्रेयसी पत्नी बन मेरे जीवन मे आ गई....
५.एक दिन काम से घर आया तो
पत्नी ने शरमा के बताया....
अब हम नही रहे "दो".......
आपका प्यार बटाने आ रही हैं "वो"...
यानी "आपकी बेटी"
सच ऐसा लगा पँखो को उड़ान मिल गई..
लंगड़े को टांग मिल गई.....
आसमान मे उड़ने लगा और
उस दिन की प्रतीक्षा करने लगा
दिए की तरह रोशनी का इंतज़ार करने लगा
लो वो शुभ घड़ी भी आ गई...
जो थी सपने मे....आज मेरे हाथो मे आ गई..
पाकर उसका पहला जादुई स्पर्श मैं तो सब भूल गया
मेरे जीवन का सबसे सुन्दर फूल खिला....
वो फूल आज भी जगमगाता हैं.....
नारी तेरा हर रूप मुझे भाता हैं...
खुद को तेरी गोद मे पाया
तेरा स्पर्श इतना अनूठा था कि
सारी उमर भूल ना पाया...
माँ हर पल ढूंढू तेरा साया
२. तीन साल का हुआ तो खुद को स्कूल मे पाया
वहाँ भी छात्र के रूप मे खुद को तेरे सामने पाया
तेरा वो रूप भी अनोखा था.....
कभी कभी तो कुछ भी समझ नही आता था
लेकिन बस तुझे देखा करता था..
३. यूँ ही कुछ वर्ष बीते
एक दिन स्कूल से लौटा तो
माँ के हाथ मे एक रुई सा कोमल बच्चा था
सब बोले तुम्हारी बहन हैं
बहन के रूप मे भी नारी ...
तुम्हारा ये रूप बहुत अच्छा था
४. खेल खेल मे बड़ा हो गया
लड़ता रहा झगड़ता रहा
कद मे पापा से भी उपर निकलता गया
कॉलेज मे एक सच्चा दोस्त पाया
वो तो था मेरा हम साया
कभी समझती, कभी समझाती
माँ की तरह हक़ जतलाती
लेकिन पता नही कब वो वो दोस्त का रिश्ता
अपनो मे बदल गया
इसका पता तब चला
जब लगा जी नही सकूँगा
उसके बगैर....
फिर हुआ परिवार से छोटा सा विद्रोह
और प्रेयसी पत्नी बन मेरे जीवन मे आ गई....
५.एक दिन काम से घर आया तो
पत्नी ने शरमा के बताया....
अब हम नही रहे "दो".......
आपका प्यार बटाने आ रही हैं "वो"...
यानी "आपकी बेटी"
सच ऐसा लगा पँखो को उड़ान मिल गई..
लंगड़े को टांग मिल गई.....
आसमान मे उड़ने लगा और
उस दिन की प्रतीक्षा करने लगा
दिए की तरह रोशनी का इंतज़ार करने लगा
लो वो शुभ घड़ी भी आ गई...
जो थी सपने मे....आज मेरे हाथो मे आ गई..
पाकर उसका पहला जादुई स्पर्श मैं तो सब भूल गया
मेरे जीवन का सबसे सुन्दर फूल खिला....
वो फूल आज भी जगमगाता हैं.....
नारी तेरा हर रूप मुझे भाता हैं...
3 Comments:
मेरी इस रचना को बोधि प्रकाशन ने अपनी पुस्तक "स्त्री होकर सवाल करती हैं" मे स्थान दिया गया हैं..बहुत अभारी हूँ..
bhUT SUNDAR RACHNA HAI
thanks manish ji
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