Friday, September 23, 2011

कैसा ये नेटवर्क हैं
सताता हैं, रुलाता हैं
सबसे दूर ले जाता हैं
समझ नही आता 
इसमे क्या इसे मज़ा आता हैं
मुझे तो बस एक ही गाना याद आता हैं
झलक दिखला जा झलक दिखला जा
एक बार आ जा आजा आजा..............


प्यार छिपता नही छिपाने से..पर्फ्यूम की बॉटल हैं...ये
कैसे छिपाए इसे जमाने से..





बाज़ार-ए-इश्क में अक्सर,
हमने चाहतों की पूंजी गवाईं है !
पसेरी भर प्यार के एवज, 
बस एक पुडिया ख्वाब कमाई है !


एक पूडिया प्यार ही काफ़ी हैं
पानी मे मिला कर पी जाए...
इस से मिटती सारी उदासी हैं
अगर लाभ ना हो तो पैसे वापस..


पंक्तियाँ अभी बाकी हैं....
हर चेहरे पे उदासी हैं
भीष्म अपनी प्रतिगाया के आगे बेबस हैं
द्रौपदी के पाँच पति हैं..फिर भी वो बेचारी हैं
सरे दरबार उसकी आबरू उतारी हैं..
युधिस्थिर ने भी झूठ बोला हैं..
आश्वतमा को मार डाला हैं..धीरे से ये बताया हैं
नर नही हाथी...



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