Monday, March 12, 2012

एक सूखा बीज़

एक सूखा बीज़
क्या नही कर सकता हैं
देखने मे भद्दा, बेरंग कि
मन ही ना करे छूने को
कूवत इतनी कि बड़ा सा
पेड़ खड़ा कर सकता हैं
और बीज़ के साथ की मिट्टी भी
कितनी बेरंग..
हर दम उसका साथ निभाती
देती हैं धरती मे जगह
पनपने का पूरा मौका
फैलने की जगह
तब जाकर छोटा सा बीज़
कमाल कर पाता हैं..
खुद का अस्तित्व मिटा कर
सारी दुनिया को खुश कर पता हैं
हम भी बने बीज़ जैसे.......
खुद को खो दे.........
अपने आप को गुम कर दे....
तभी समाज को भी कुछ दे पाएँगे
तभी हम कुछ कर पाएँगे..

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