चंद शेर
मेरे मुस्कुराने से आप जी सकते हैं,
तो मुझे मुस्कुराने से कोई परहेज नही
लेकिन क्या खाली पेट सोएंगे,
महगाई के दौर मे खाना कहाँ से आएगा?
आज कल यही होता हैं, फिर तू क्यूँ रोता हैं तू कोई जमाने से अलग तो नही
कोई भी ले ऋण किसी तरह का, उसका तेरे जैसा ही हाल होता हैं
तुम रार, तक़रार जिसे कहते हो
ये मेरा प्यार हैं, तुमको अब भी नही क्या
मुझपे ऐतबार हैं, कैसा ये प्यार हैं??
लाजवाब तुमने ही तो बनाया हैं
वरना हम थे इन्सा किस काम के???
मत खुश हो इतना, मत मुस्कुरा
इस पे भी क़यामत आ सकती हैं
देख लिया सरकार ने जो मुस्कुराते
स्माइल टॅक्स लगा सकती हैं
बेमोल को अनमोल करने हुनर सीखा हैं
क्या बताउ, तुझे सच कहती हूँ
आज फिर से मेरे हाथ मे गीता हैं..
मत कहो चुप रहो...वरना सब सुन लेंगे..और हम कही के नही रहेंगे
कही मिलो...कैसे भी मिलो....लेकिन जब भी मिलो...प्यार से मिलो..एक जुट होके मिलो..
आँगन मे बिखर जाए पहले जैसी खुशिया मेरे यार कभी तो मिलो..
बहुत अच्छा गणित हैं तुम्हारा
खुद को जोड़ लिया हैं हमसे
दुनिया को घटा डाला हैं.......
सच....तुम्हारा ये गणित हमे बहुत भाया हैं
खिताब पाने के बाद सब ऐसे ही हो जाते हैं
तबीयत हो जाती हैं नसाज़, दोस्त भूल जाते हैं
ये भी उसकी ही एक अदा हैं
क्यूँ होते हो परेशान ..
चाँद आज भी तुम पे फिदा हैं
पहेली अबूझ होती हैं, ये सच हैं
लेकिन सहेली का दोष, समझ नही आया हैं
पास आकर गुजर जाना भी हमे महका जाएगा
तुम्हे क्या पता हर झोका तुम्हारी खुश्बू लाएगा
कलम को तलवार बना देंगे
दुनिया को दिखा देंगे
नही थकेंगे, नही थमेगे
कर देंगे सब खाक बेईमानी
बर्फ पिघली सन्नाटा उबरा मच गया शोर
अब इंसान इंसान ना हो कर बन गया मशीन
कुछ नही रहा सुन ने लायक, समझने लायक
छिड़ गया अब घमासान चहु ओर
तो मुझे मुस्कुराने से कोई परहेज नही
लेकिन क्या खाली पेट सोएंगे,
महगाई के दौर मे खाना कहाँ से आएगा?
आज कल यही होता हैं, फिर तू क्यूँ रोता हैं तू कोई जमाने से अलग तो नही
कोई भी ले ऋण किसी तरह का, उसका तेरे जैसा ही हाल होता हैं
तुम रार, तक़रार जिसे कहते हो
ये मेरा प्यार हैं, तुमको अब भी नही क्या
मुझपे ऐतबार हैं, कैसा ये प्यार हैं??
लाजवाब तुमने ही तो बनाया हैं
वरना हम थे इन्सा किस काम के???
मत खुश हो इतना, मत मुस्कुरा
इस पे भी क़यामत आ सकती हैं
देख लिया सरकार ने जो मुस्कुराते
स्माइल टॅक्स लगा सकती हैं
बेमोल को अनमोल करने हुनर सीखा हैं
क्या बताउ, तुझे सच कहती हूँ
आज फिर से मेरे हाथ मे गीता हैं..
मत कहो चुप रहो...वरना सब सुन लेंगे..और हम कही के नही रहेंगे
कही मिलो...कैसे भी मिलो....लेकिन जब भी मिलो...प्यार से मिलो..एक जुट होके मिलो..
आँगन मे बिखर जाए पहले जैसी खुशिया मेरे यार कभी तो मिलो..
बहुत अच्छा गणित हैं तुम्हारा
खुद को जोड़ लिया हैं हमसे
दुनिया को घटा डाला हैं.......
सच....तुम्हारा ये गणित हमे बहुत भाया हैं
खिताब पाने के बाद सब ऐसे ही हो जाते हैं
तबीयत हो जाती हैं नसाज़, दोस्त भूल जाते हैं
ये भी उसकी ही एक अदा हैं
क्यूँ होते हो परेशान ..
चाँद आज भी तुम पे फिदा हैं
पहेली अबूझ होती हैं, ये सच हैं
लेकिन सहेली का दोष, समझ नही आया हैं
पास आकर गुजर जाना भी हमे महका जाएगा
तुम्हे क्या पता हर झोका तुम्हारी खुश्बू लाएगा
कलम को तलवार बना देंगे
दुनिया को दिखा देंगे
नही थकेंगे, नही थमेगे
कर देंगे सब खाक बेईमानी
बर्फ पिघली सन्नाटा उबरा मच गया शोर
अब इंसान इंसान ना हो कर बन गया मशीन
कुछ नही रहा सुन ने लायक, समझने लायक
छिड़ गया अब घमासान चहु ओर
2 Comments:
सुन्दर प्रस्तुति...दिल को छू गई..
shukriya sanjay ji..
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