क्या लिखू कैसे लिखू?
क्या लिखू कैसे लिखू?
जो अंतर मे समा जाए
मिट जाए भेद स्त्री पुरुष का
परमात्मा प्रगट हो जाए
सहज यौगिक क्रियाओं से
जो उत्पन्न होता हैं
कहते हैं नई स्रिस्टी का
तभी सृजन होता हैं
करने को नया सृजन
किसे प्रयोग मे लाउ
मिटे जब भेद सारे
तभी अभेद कहलाउ
सोचती हूँ नया जीवन
नया संगीत फिर गाउ
क्या लिखू कैसे लिखू?
जो सब मे समा जाउ
- Khursheed Hayat मिटे जब भेद सारे/तभी अभेद कहलाउ
सोचती हूँ नया जीवन/नया संगीत फिर गाउ....... sundar bhavon ki abhivyakti , ek ek shabd bahot kuchh kah rahe hain , sunne wala chahiye , magar sunai kise deta hai ? samaj to bahar hai aur goonga bhi .. bahot umda . - Aparna Khare shukriya Khursheed ji....kud ka kaha khud ko samajhna hai...koi samjhe na samjhe....
- Aparna Khare संत लोग पुकारते कर के लंबे हाथ
तू परमत्म देव हैं तू त्रिलोकी नाथ - Khursheed Hayat hamen sahi aur sachchi baaten har gharon tak pahuncha deni hai .... raasta dikhane wala koi aur hai .
- Aparna Khare ji ham apna kaam kare..khuda ko uska kaam karne de........waise bhi Khuda yani jo khud chal kar hamare paas aye
- Madan Soniरोक लो इस मंथित मन को ....
समेट लो मन ओ तन को ..
बंद कर लो खुद अपनी आँखें
अब कुंती नहीं , वो पांडव नहीं
वो सूर्य नहीं वो चन्द्र नहीं वो वायु नहीं ..
और वो कर्ण भी नहीं .......
समेट लो सब को ..क्योंकि .....
अबी नहीं लिखी जायेगी
महाभारत दोबारा ...... - Aparna Khare महाभारत तब भी थी अब भी हैं
लोग बदल गये हैं, परिवेश वही हैं
कारण जो पहले था, आज भी वही हैं
ना सही कुंती तो क्या, और कुन्तिय जनम लेती हैं रोज़
ना रहे पांडव, लेकिन सच अब भी वही हैं - Ravindra Shukla सृजन---वाह क्या बात है अपर्णा ---- ह्रदय की वेदना जब हलचल मचाये अंतर में कुछ कंपन कुछ स्पंदन से हुए मन में आरम्भ हुआ मस्तिष्क में एक मंथन कुछ शब्द आये मनस पटल पर और सजने लगे क्रम से सुंदर व्यवस्थित मचली लेखनी करने को अंकित और फिर सृजन हुआ एक कविता का.-----वाकई बेहद सरल और भाव में लिखी गयी कविता ----मुबारक -----....
- Aparna Khare dada bahut bahut abhaar...sab apke ashirwaad se ho paya hain warna manthan bhi kaha hamare bus ki baat hain...jab hamare bade ham me prerna bharte hain tabhi kuch shabd prasphutit hote hain....
- Prathvipal Singh अमरत्व था पाया विषपान मेँ . .मंथन का विष भी दर्द हर का बेदर्द था ..जय हो .
- Poonam Matia मिटे जब भेद सारे
तभी अभेद कहलाउ
सोचती हूँ नया जीवन
नया संगीत फिर गाउ
क्या लिखू कैसे लिखू?
जो सब मे समा जाउ.........sunder srijan .....AparnaYesterday at 2:12pm · · 2 - Rajani Bhardwaj क्या लिखू कैसे लिखू?
जो अंतर मे समा जाए
मिट जाए भेद स्त्री पुरुष का..........kash ke ho jaye aisa................nice aparnaYesterday at 2:45pm · · 1 - Suman Mamgain Aabha Bahut sunder sirjan . Her shabad Mano chun chun kar kavita ka sringar kar rehey hein.. Bahut sunderYesterday at 6:01pm · · 1
- Kiran Arya Mitr vo Parampita sarvopari hai hame itni koovat kaha jo uske bhed ko likh paaye................6 hours ago · · 1
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