थेओरी और प्रॅक्टिकल
प्रशन -
"एक जीवन जो कविता में रचा जाता है
एक जीवन जिससे कविता रची जाती है
दोनों जीवन क्या भिन्न होते हैं?
उत्तर -
जो जीवन कविता मे रचा जाता हैं
वो कल्पना का अंग होता हैं
उसमे कवि की सोच होती हैं
काश ऐसा होता ...काश वैसा होता
यू करते, यू चलते, यू रहते
यू ही साथ रह कर अपना जीवन सवारते
खुशियो को निखारते,
लेकिन उसमे कोई शक्ल नही होती हैं
वो जीवन जिस से कविता रची जाती हैं
वो जिंदा होता हैं साँस लेता हैं, महसूस होता हैं
शब्द वही होते हैं लेकिन मायने बदल जाते हैं
आँखो मे हर वक़्त एक चेहरा होता हैं
चेहरे से प्यार होता हैं, ज़ुबान खामोश हो जाती हैं
आँख सब कह जाती हैं..प्यार रूबरू होता हैं
एक शब्द मे कहे तो पहले वाला थेओरी
दूसरा प्रॅक्टिकल होता हैं....
"एक जीवन जो कविता में रचा जाता है
एक जीवन जिससे कविता रची जाती है
दोनों जीवन क्या भिन्न होते हैं?
उत्तर -
जो जीवन कविता मे रचा जाता हैं
वो कल्पना का अंग होता हैं
उसमे कवि की सोच होती हैं
काश ऐसा होता ...काश वैसा होता
यू करते, यू चलते, यू रहते
यू ही साथ रह कर अपना जीवन सवारते
खुशियो को निखारते,
लेकिन उसमे कोई शक्ल नही होती हैं
वो जीवन जिस से कविता रची जाती हैं
वो जिंदा होता हैं साँस लेता हैं, महसूस होता हैं
शब्द वही होते हैं लेकिन मायने बदल जाते हैं
आँखो मे हर वक़्त एक चेहरा होता हैं
चेहरे से प्यार होता हैं, ज़ुबान खामोश हो जाती हैं
आँख सब कह जाती हैं..प्यार रूबरू होता हैं
एक शब्द मे कहे तो पहले वाला थेओरी
दूसरा प्रॅक्टिकल होता हैं....
1 Comments:
जिंदगी का सच जब कल्पना की ओढनी लेता हैं तब एक कविता का जन्म होता हैं ....सिर्फ कल्पना से कविता नहीं रची जा सकती और सच को कभी सीधा नहीं लिखा जा सकता .......आभार
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