आज कल रिश्ते पैसो से जाने जाते हैं
जितना हो आदमी काम का ....
रिश्ते उतने ही गहराते जाते हैं....
जब चरखी हैं किसी और के हाथ
पतंग ही बन ना होगा .......
तोड़ दो डोर....फिर मेरी उड़ान देखना
एक दिन खुदा ने और मैने
एक दूसरे को पहचान कर
अंजान होने का नाटक किया
खुदा को पता था आएगा यही....जाएगा कहाँ..
मैने सोचा खो जाए..ढूँढ पाएगा कहाँ?
अपनो से बडो की हर बात हमे भाती हैं
क्यूंकी ये बाते ही हमे जीवन जीना सिखाती हैं
वक़्त कब ठहरा हैं............
खवाबो पे भी नींद का पहरा हैं
रात ठहर भी जाए तो क्या
मंज़र कभी रुकता नही देखा
तुम रोते हो तो हमे अच्छा नही लगता
तुम्हारे सिवा अब हमे कोई सच्चा नही लगता
जितना हो आदमी काम का ....
रिश्ते उतने ही गहराते जाते हैं....
जब चरखी हैं किसी और के हाथ
पतंग ही बन ना होगा .......
तोड़ दो डोर....फिर मेरी उड़ान देखना
एक दिन खुदा ने और मैने
एक दूसरे को पहचान कर
अंजान होने का नाटक किया
खुदा को पता था आएगा यही....जाएगा कहाँ..
मैने सोचा खो जाए..ढूँढ पाएगा कहाँ?
अपनो से बडो की हर बात हमे भाती हैं
क्यूंकी ये बाते ही हमे जीवन जीना सिखाती हैं
वक़्त कब ठहरा हैं............
खवाबो पे भी नींद का पहरा हैं
रात ठहर भी जाए तो क्या
मंज़र कभी रुकता नही देखा
तुम रोते हो तो हमे अच्छा नही लगता
तुम्हारे सिवा अब हमे कोई सच्चा नही लगता
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