Tuesday, May 8, 2012

तुम्हारा इज़हार


चाँदनी रात थी...............
तारों की झुर्मुट मे चाँद अकेला था
तारो का काफिला चाँद को घेरे था
ठंडी ठंडी हवा बह रही थी
हर तरफ गहन सन्नाटा था
लग रहा था चाँद को कुछ कहना हैं
वो बेचैनी से करवटें बदल रहा था
बात बार बार  लबो तक आकर
लौट जाती थी..शायद उसे कुछ कहने मे
ना जाने क्यूँ शरम आती थी
उसे पता था गर आज ना कह
पाया तो कभी नही कह पाएगा
उसका साथी उस से कही दूर
चला जाएगा...आज आख़िरी मौका था
किसी तरह हिम्मत जुटा कर बोला
"क्या मुझसे प्यार करोगी"
चाँदनी को आ गई शर्म
वो भागी अंदर की ओर
चाँद ने पकड़ा ढेरे से उसका हाथ
और कहा मत करो शोर
वरना सबको पता चल जाएगा
प्यार करने से पहले ही हमारा प्यार
रुसवा हो जाएगा......
वो दिन और आज का दिन
दोनो ने एक दूसरे का हाथ नही छोड़ा हैं
दोनो का प्यार...अब तक बहुत गहरा हैं

2 Comments:

At May 8, 2012 at 8:17 AM , Blogger Shree said...

लाजवाब रचना ..........बहुत सुन्दर .....इसी तरह लिखतें रहें ................जय जय ..................

 
At May 9, 2012 at 12:11 PM , Blogger अपर्णा खरे said...

shukriya Shree ji ap isi tarah hamara utsaah badhate rahe...

 

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