Tuesday, May 22, 2012

राम सीता


संजोग हैं फिर भी कहाँ संयोग हैं?
साथ हैं फिर भी कहाँ साथ हैं?
साथ हैं राम के....फिर भी बनवास हैं
चाहे कितनी भी जनमपत्री मिलवा लो
मेरे दोस्त......
विधि का लिखा हर वक़्त तेरे हाथ हैं..





2 Comments:

At March 18, 2013 at 10:10 PM , Blogger Madan Mohan Saxena said...

बहुत सुंदर .बेह्तरीन अभिव्यक्ति.शुभकामनायें.

 
At March 19, 2013 at 3:49 AM , Blogger अपर्णा खरे said...

shukriya Madan ji..

 

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