Monday, May 21, 2012

मरने का मॅन हैं तो क्यूँ शुगर खाए
चिकनाई मे क्यूँ फिसल फिसल जाए..
कोई ऐसी जुगत लगाए..यू ही मौत आ जाए
प्यार करे और बेमौत मर जाए

बात आपकी सच हैं कुछ बातें
कहने की नही होती
डूबने की होती हैं
समझने की होती हैं
हर बात को कविता मे ढालना
तुम्हारी खूबी हैं........इस खूबी को
यू ना मेरे लिए पिरोना
बस प्यार करते जाना
कविता चाहे कभी ना लिखना


पिया कहे मोहे सुंदर
मैं बली बळी जाउ
दर्पण देखु रूप निहारू
कहीं चैन ना पाउ....

रिश्तो को पकड़े पंछी की तरह..
ऐसा ना हो...
कस के पकड़े तो दम घुट जाए
छोड़ दे तो कहीं उड़ ना जाए

खुदा आपको ऐसा मसरूफ़ करे
बात कर ना पाए खुद से भी कभी

नमक लगी यादे और भी नमकीन हो जाती हैं
चाय के साथ याद करो तो और भी स्वाद दे जाती हैं


4 Comments:

At May 21, 2012 at 7:22 PM , Blogger डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

 
At May 22, 2012 at 7:21 AM , Blogger नुक्‍कड़ said...

गुड़ कविता मीठी मीठी

 
At May 24, 2012 at 11:53 AM , Blogger अपर्णा खरे said...

thanks uncle....

 
At May 24, 2012 at 11:54 AM , Blogger अपर्णा खरे said...

thanks nukkad ji....

 

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