Tuesday, November 6, 2012

पढ़ के ख़त मेरा




पढ़ के ख़त मेरा 
मुझसे दूर चले जाओगे 
जाकर दूर मुझसे
क्या खुश रह पाओगे 
पढ़ के देखो फिर से 
लिखी हैं मेरी मजबूरिया 
शायद  तुम्हे लगा होगा 
मैंने तुम्हे मायूस किया हैं।।
नहीं मेरे हमसफर 
खुद को मैंने जिन्दा रह कर
मरने की फरमान दिया हैं।।

2 Comments:

At November 7, 2012 at 6:51 AM , Anonymous Anonymous said...

This comment has been removed by the author.

 
At November 7, 2012 at 11:20 AM , Blogger अपर्णा खरे said...

thanks jindagi

 

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home