Friday, February 1, 2013

धूप को चाँदनी


धूप को चाँदनी 
कहकर इसलिए 
पुकारा
छोड़ दे वो 
अपना तेज़, 
बन जाए कोमल 
तुम्हारी तरह....
बादलो मे से भी 
आती रही हैं 
एक आवाज़ 
जो देती हैं भरोसा 
तेरे मेरा होने का..
तभी तो सच को 
सच ही 
रहने दिया मैने...
और
बदल दिया 
अपने आँसू को 
मोतियों मे....
तुम्हारे लिए..

लेखनी जो चुप हुई तो 
पसर जाएगा गहन अंधेरा 
कौन करेगा रोशनी की बात...
कहाँ से आएगा सवेरा

बजा दिया जो दिल का साज़ 
शोले भी खाक हो जाएँगे..
तेरी शान के आगे वो भी
कहाँ टिक पाएँगे..............

छोटे बच्चे जल्दी सीख जाते हैं....
एक बार कोशिश तो करो......
एक दिन ऐसा भी आएगा.......
तुम्हारे बड़े कदमो को लाँघ वो
तुमसे भी आगे निकल जाएगा....

सबके नसीब मे 
कहाँ होती हैं बेफिक्री
ये तो बस फकीरो 
(खुदा की इबादत करने वाले) 
को नसीब होती हैं..


0 Comments:

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home