Tuesday, January 29, 2013




महबूब आया हैं..
मौसम भी साथ लाया हैं
बाज उठी हैं शहनाई...
लगता हैं बहारों का 
मौसम लौट आया हैं..

पुरानी आदते भी कुछ ऐसी हैं 
जैसे हो आईना अपना
किर्चि किर्चि बिखर जाओगे
तब भी अपना अक्स 
हर किर्च मे देख पाओगे..

नींद से अपनी पुरानी अदावत हैं
झाँक के लौट जाती हैं..
नही आती हैं मेरे घर की तरफ
शायद मुझसे आज भी घबराती हैं.


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