दूरी
ये दूरी हैं दोनो के दरमिया...
ये शब्दो को मिलने नही देती..
अटका देती हैं ज़ुबान..
फसा देती हैं तालू से ज़ुबान..
पता हैं दोनो के शब्द
एक सुर मे निकले तो
जमाने मे कुछ नया हो जाएगा..
मिल जाएँगे धरती और आकाश..
संध्या का समय हो जाएगा..
संध्या किसे अच्छी नही लगती..
तुम ही बताओ..जब मिलते हैं
सूरज के लाल गोले से..
उतार कर झुर्मुट मे..अकेले अकेले..
कुछ तो नया होता होगा..हैं ना
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